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Tuesday, April 27, 2010

The basic difference between religion and science


धर्म और विज्ञान का मूल भेद





धर्म और विज्ञान के मूल आयाम में यही भेद है। विज्ञान भी उन्हीं बातों को कह रहा है जिन्हें धर्म कहता है। उसकी एम्फेसिस मेकेनिकल है, उसका जोर यंत्र पर है। धर्म भी वही कह रहा है, लेकिन उसका जोर चेतना पर, प्रज्ञा पर, जीवंत पर है। और वह जोर कीमती है। अगर पश्चिम का विज्ञान सफल हो गया, तो अंततः आदमी मशीन हो जाएगा। अगर पूरब का धर्म जीत गया, तो अंततः मनुष्य परमात्मा हो जाता है। दोनों ही अहंकार छीन लेते हैं। लेकिन एक से अहंकार छिनता है तो आदमी नीचे गिरता है।

आज से डेढ़ सौ, दो सौ वर्ष पहले जब विज्ञान ने पहली बार यह बात करनी शुरू की कि आदमी परवश है। जब डार्विन ने कहा कि तुम यह भूल जाओ कि तुम्हें परमात्मा ने निर्मित किया है, तुम पशुओं से आए हो। तब आदमी का पहला अहंकार टूटा। बड़े जोर से टूटा। सोचता था, ईश्वर-पुत्र हैं। पता चला, नहीं। पिता ईश्वर नहीं मालूम पड़ता। वानर जाति का एक चिंपांजी, बबून, कोई बंदर पिता मालूम पड़ता है। निश्चित, धक्के की बात थी। कहां परमात्मा था सिंहासन पर, जिसके हम बेटे थे, और कहां बंदर के बेटे होना पड़ा। बहुत दुखद था। बहुत पीड़ादाई था।

तो पहले विज्ञान ने कहा कि आदमी आदमी है, यह भूले; एक प्रकार का पशु है। सारी अहंकार की, सारी ईगो की व्यवस्था टूट गई। लेकिन यात्रा जब भी किसी तरफ शुरू हो जाए तो जल्दी रुकती नहीं, अंत तक पहुंचती है। जानवर पर रुकना मुश्किल था। पहले विज्ञान ने कहा कि आदमी एक तरह का पशु है। फिर विज्ञान ने पशुओं की खोजबीन की और पाया कि पशु एक तरह का यंत्र है। पाया कि पशु एक तरह का यंत्र है।

अब आप देखते हैं, कछुआ सरक रहा है। आप देखते हैं, धूप घनी हो गई, तो कछुआ छाया में चला गया। आप कहेंगे, कछुआ सोचकर गया। विज्ञान कहता है, नहीं। विज्ञान ने मेकेनिकल कछुए बना लिए, यंत्र के कछुए बना लिए। उनको छोड़ दें। जब तक धूप कम तेज रहती है, तब तक वे धूप में रहे आते हैं। जैसे ही धूप घनी हुई कि वे सरके। वे झाड़ी में चले गए। यंत्र है! क्या हो गया उसको? विज्ञान कहता है कि थर्मोस्टेट है। इतने से ज्यादा गर्मी जैसे ही भीतर पहुंची कि बस छाया की तरफ सरकना शुरू हो जाता है। इसमें कुछ चेतना नहीं है। यंत्र भी यह कर लेगा। यह आटोमेटिक यंत्र भी कर लेगा। आप देखते हैं, एक पतिंगा उड़ता है दीए की ज्योति की तरफ। कवि कहते हैं कि दीवाना है, ज्योति का प्रेमी है, इसलिए जान गंवा देता है। वैज्ञानिक नहीं कहते हैं। वे कहते हैं, दीवाना वगैरह कुछ भी नहीं है, मेकेनिकल है। जैसे ही उस पतिंगे को ज्योति दिखाई पड़ती है, उसका पंख ज्योति की तरफ झुकना शुरू हो जाता है। उन्होंने यांत्रिक पतिंगे बना लिए हैं। उनको छोड़ दें, अंधेरे में घूमते रहेंगे। फिर दीया जलाएं, फौरन दीए की तरफ चले जाएंगे।

पीछे विज्ञान ने सिद्ध किया कि जानवर यंत्र है। अंतिम नतीजा बड़ा अजीब हुआ। आदमी था जानवर, फिर जानवर हुआ यंत्र। अंततः निष्कर्ष हुआ कि आदमी यंत्र है। स्वभावतः इसमें सच्चाई है। इसमें थोड़ी सच्चाई है। अहंकार तोड़ते हैं, यह तो ठीक है। लेकिन अहंकार तोड़कर आदमी नीचे गिरता है, यंत्रवत हो जाता है। परिणाम खतरनाक होंगे। परिणाम खतरनाक हुए हैं।

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